सोमवार, 7 जून 2010

तुम मुझ को आवाज़ न दो



दिल की तड़प संगीत है ख़ुद ही,
तुम
अब कोई साज़ दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो

दिल
की हर एक धड़कन,
मुझको
सारी रात जगाती है
तन्हा
मैं जब भी होता हूँ,
तेरी
याद सताती है

धड़
कन तो एक गीत है ख़ुद ही,
तुम
अब कोई राग दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो

जाने
क्यों तनहाई में,
मैं नीर
बहाने लगता हूँ
दर्दे
-जिगर जब बढ़ जाता है,
मैं मुस्काने लगता हूँ

काट
दिए हैं पंख समय ने,
अब
इनको परवाज़ दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो


2 टिप्‍पणियां:

स्वाति ने कहा…

काट दिए हैं पंख समय ने,
अब इनको परवाज़ न दो।
सिसक रहा हूँ आज अकेला,
तुम मुझ को आवाज़ न दो।
bahut khoob.sunder prastuti.

Seema Singh ने कहा…

Anwaruji!bahut pasand aai aapki rachna-dhadkan to ek geet hai khud hi,tum ab koi raag na do!
mujhko is raat ki tanhai men aawaj na do-geet yaad aa gaya.vaise rainbow mail main kahi meri har baat ko aapne jagah diya shukriya!

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