रविवार, 7 सितंबर 2008

नींद नहीं आती है…


अनजाने अनचीन्हे रस्ते पे चलती है,
जैसे फ़िज़ाओं में तितली मचलती है।
यादों की चिलमन सी गिरती संभलती है,
अँधियारा होते ही दीपक सा जलती है।

तारों के झुरमुट में रस्ते बनाती है,
गीतों और गज़लों के मुखड़े सजाती है।
जीवन का राग मेरे साथ-साथ गाती है,
दूर कहीं छुप-छुप के पायल खनकाती है।

वादा है उसका मैं सपनो में आऊँगी,
प्रीतम का सूना घर आँगन सजाऊँगी।
देहरी पे खुशियों के दीपक जलाऊंगी,
रेशम की चमकीली माला बन जाऊंगी।

चाहत है सच्ची तो फिर क्यों ये दूरी है ?
लगता है तुम बिन ये ज़िन्दगी अधूरी है।
साजन से मिलना है ऐसी मजबूरी है ,
सपनों की खातिर तो सोना ज़रूरी है।

रात बड़ी बैरन है मुझको सताती है ,
ख़्वाबों की डोली को दूर लिए जाती है।
नैनों के आँचल से निंदिया चुराती है,
नींद नहीं आती है, नींद नहीं आती है...
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