गुरुवार, 26 जून 2008

...गहरा ज़ख्म



ज़ख्म गहरा था मगर हमने दिखाया ही नही,

उसने पूछा भी नही हमने बताया भी नही।


कुछ न समझें वो अगर इसमे ख़ता मेरी कहाँ,

हाले दिल हमने कभी उनसे छिपाया ही नही।


तेरी दुनिया को ज़रूरत है हमारी 'अनवार'

फिर न कहना के कभी हमने बताया ही नही।
_अनवारुल हसन 'अनवार'

आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे


शहर में ढूँढ रहा हूँ के सहारा दे दे
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे


पेड़ सब नंगे फकीरों की तरह सहमे हैं
किस से उम्मीद ये की जाए कि साया दे दे

वक्त की संग-ज़नी नोच गई सारे नक़्श
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाए
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे

मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पहरा दे दे

डूब जाना ही मुकद्दर है तो बेहतर वरना
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे

जिसने कतरों का भी मोहताज किया मुझको
वो अगर जोश में आ जाए तो दरिया दे दे

तुमको राहत की तबीयत का नहीं अंदाज़ा
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे।
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