सोमवार, 25 जनवरी 2010

गणतंत्र का दीया


अब तो ये भी याद नहीं है कितनी बार ये आँखें रोई,
इन
बीते सालों में हमने ख़ुद ही अपनी लाशें ढोई.

... लेकिन उम्मीद कभी नहीं मरती...
अगर
हम ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारी निभाएंगे
...तो हालात बदल जाएंगे...
...HAPPY REPUBLIC DAY

बुधवार, 13 जनवरी 2010

यादों की अलमारी



मैंने कभी सजा कर समेट कर नहीं रखा

यादों को तहा कर लपेट कर नहीं रखा।

इन्हे बेतरतीब अलमारी में भरता चला गया

मेरी ज़िन्दगी का कमरा बिखरता चला गया।

ज़हन का पट खुलते ही बेतहाशा बिखर गयी यादें

मुझे मुंह चिढा रहे हैं टूटे वादे और भूली बिसरी बातें।

अपने आप में गुंथ कर उलझ गयी है एक एक याद

छोर नहीं मिल रहा इसलिए सुलझ नहीं रही कोइ बात।

इधर कोइ नहीं आता किस से करुँ फ़रियाद

बंद कमरे में घुट जायेगी फिर मेरी आवाज़।

बिखरी हुई कुछ यादें अभी भी सो रही हैं,

उनीदी पलकों पर कुछ ख़्वाब संजो रही हैं

हाथ लगाने पर ये चिल्लाएंगी चीख़ उठेगीं

अभी तो बस धीरे धीरे ही रो रहीं हैं

मन बहलाने को ये यादें कोई कहानी माँगेगी

टूटे जुडते रिश्तों की फिर कोई निशानी मांगेंगी

जाने कितनी सदियों से ये प्यासी हैं

मुझे पता है ये मेरी आखों से पानी मांगेंगी।

Related Posts with Thumbnails