मंगलवार, 29 जून 2010

माफ़ कीजियेगा... मगर!


कभी कभी लगता है...
ये
हमको पीछे छोड़ कर,
बहुत
आगे निकल जाएँगे

फिर
एहसास होता है,
कि
शायद...
ज़िन्दगी
के अगले चौराहे पर ही,
हमें
इनकी लाश मिले

क्योंकि
...
लापरवाही से गाड़ी चलाने की वजह से,
ये
तो यहीं मर जाएंगे

सोमवार, 7 जून 2010

तुम मुझ को आवाज़ न दो



दिल की तड़प संगीत है ख़ुद ही,
तुम
अब कोई साज़ दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो

दिल
की हर एक धड़कन,
मुझको
सारी रात जगाती है
तन्हा
मैं जब भी होता हूँ,
तेरी
याद सताती है

धड़
कन तो एक गीत है ख़ुद ही,
तुम
अब कोई राग दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो

जाने
क्यों तनहाई में,
मैं नीर
बहाने लगता हूँ
दर्दे
-जिगर जब बढ़ जाता है,
मैं मुस्काने लगता हूँ

काट
दिए हैं पंख समय ने,
अब
इनको परवाज़ दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो


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