गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

नव वर्ष मंगलमय हो

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

कोई तो इधर आए


इस बंद हवेली में दम मेरा घुट जाए,
पलकों को बिछाए हूँ कोई तो इधर आए।

सुनसान अंधेरे में घबराएगा दिल मेरा,
डरता हूँ कहीं सूरज सोने चला जाए।


अपने सभी ज़ख्मों को मैं दिल में छुपा लूँगा,
कोशिश है के आंखों से आंसू छलक जाए।

चौराहे पे कर अब मंजिल ही नही मिलती,
रस्ता भी नही मालूम जायें तो कहाँ जायें।

'अनवार' अकेले में मांगी है दुआ रब से,
घंघहोर अंधेरों तक कोई तो किरण आए।
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