मंगलवार, 30 नवंबर 2010

प्यारी सी एक घरवाली


त्योहारों का मज़ा मिले जो साथ हो कोई दिलवाली,
उसके संग तो हो जाएगी हर दिन अपनी दीवाली.
तान के सीना साथ में उसके हम भी जाएँगे बाज़ार,
जल्दी से 'अनवार' दिला दो प्यारी सी एक घरवाली.

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

ईद मुबारक !



ख़ुदाया बना कोई ऐसा निज़ाम,
जहाँ सबकी ख़ुशियों का हो इंतज़ाम।
रहे गर बाक़ी कोई बदनसीब,
तो हो जाए 'अनवार' अपनी भी ईद.

सोमवार, 2 अगस्त 2010

ये कैसा सहारा!


मैं परेशां तो नहीं,
पूछा है तड़पाने के बाद
वो सहारा दे रहे हैं मुझको,
मर जाने के बाद

मंगलवार, 29 जून 2010

माफ़ कीजियेगा... मगर!


कभी कभी लगता है...
ये
हमको पीछे छोड़ कर,
बहुत
आगे निकल जाएँगे

फिर
एहसास होता है,
कि
शायद...
ज़िन्दगी
के अगले चौराहे पर ही,
हमें
इनकी लाश मिले

क्योंकि
...
लापरवाही से गाड़ी चलाने की वजह से,
ये
तो यहीं मर जाएंगे

सोमवार, 7 जून 2010

तुम मुझ को आवाज़ न दो



दिल की तड़प संगीत है ख़ुद ही,
तुम
अब कोई साज़ दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो

दिल
की हर एक धड़कन,
मुझको
सारी रात जगाती है
तन्हा
मैं जब भी होता हूँ,
तेरी
याद सताती है

धड़
कन तो एक गीत है ख़ुद ही,
तुम
अब कोई राग दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो

जाने
क्यों तनहाई में,
मैं नीर
बहाने लगता हूँ
दर्दे
-जिगर जब बढ़ जाता है,
मैं मुस्काने लगता हूँ

काट
दिए हैं पंख समय ने,
अब
इनको परवाज़ दो
सिसक
रहा हूँ आज अकेला,
तुम
मुझ को आवाज़ दो


गुरुवार, 6 मई 2010

तनहाई की बाहें


कैसे कह दूं के मुझे महफ़िलों का शौक़ नहीं,
और
महफ़िल में भी जाने से मुझे रोक नहीं,
फिर
जाने क्यों मेरा दिल ये सिहर जाता है?
वक़्त
तन्हाई की बाँहों में गुज़र जाता है ???

मंगलवार, 30 मार्च 2010

क़लम तलवार के आगे


मैं काग़ज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ,
नहीं है काम ये आसां मगर अक्सर बनाता हूँ

मेरी हालत तो देखे पास आकर उस घड़ी कोई,
मैं अरमानो में अपने आग जब हंस कर लगाता हूँ

ये जितने फूल हैं ले लो हमें तुम ख़ार रहने दो,
ये दामन थाम लेंगे मैं इन्हें रहबर बनाता हूँ

नज़र आती है मुझको हर हसीं चेहरे की सच्चाई,
मैं दरपन को उठा कर जब कभी पैकर बनाता हूँ

जगा कर दर्द हर दिल में बुझा दो आग नफ़रत की,
मैं अपने अश्क़ से पैमाना- - कौसर बनाता हूँ

जहाँ से दूर कोसों हो गया हो दर्द और आहें,
मैं ऐसे महल तख्तों-ताज को ठोकर लगाता हूँ

उठाई है क़लम हमने यहाँ तलवार के आगे,
मैं दुनिया को क़लम का आज ये जौहर दिखाता हूँ

मेरे गिरने पे क्यों 'अनवार' हंस पड़ती है ये दुनिया,
मैं ठोकर खा के अपनी ज़िन्दगी बेहतर बनाता हूँ

सोमवार, 1 मार्च 2010

रंगों का मज़हब


सभी रंगों ने आपस में मिल कर,
मिटा दिया है अपना अस्तित्व
भुला दिया है अपना धर्म,
नही रहा भेद भाव का तत्त्व

नहीं रह गयी इनकी पहचान,
इनसे कुछ सीखेगा इन्सान ?

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

एक बात कहना चाहते हैं


आप के पास वाली कुर्सी पर
अब कोई और बैठता है
आप के क़रीब है
ये सोच कर ऐंठता है।
मेरी हर चीज़ पर
कर लिया है अधिकार,
मुझे बना दिया है लाचार।

ऑफिस से लेकर घर तक
आपके सारे काम निपटाता है।
वो इसी पर खुश है
के आप के घर जाता है।
लोग छुप छुप कर बतिया रहे है
आप पर उँगलियाँ उठा रहे हैं
बदनामी आप की होगी
उसका क्या जाता है।

कभी मैंने भी आपका हाथ बटाया था,
घर नहीं पर ऑफिस का काम निपटाया था।
एक फ़ैसले ने मुझे आप से दूर कर दिया,
मेरे ट्रांसफ़र ने मुझे मजबूर कर दिया।

हम आप से एक बात कहना चाहते हैं,
हम आप के पास रहना चाहते हैं।

सोमवार, 25 जनवरी 2010

गणतंत्र का दीया


अब तो ये भी याद नहीं है कितनी बार ये आँखें रोई,
इन
बीते सालों में हमने ख़ुद ही अपनी लाशें ढोई.

... लेकिन उम्मीद कभी नहीं मरती...
अगर
हम ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारी निभाएंगे
...तो हालात बदल जाएंगे...
...HAPPY REPUBLIC DAY

बुधवार, 13 जनवरी 2010

यादों की अलमारी



मैंने कभी सजा कर समेट कर नहीं रखा

यादों को तहा कर लपेट कर नहीं रखा।

इन्हे बेतरतीब अलमारी में भरता चला गया

मेरी ज़िन्दगी का कमरा बिखरता चला गया।

ज़हन का पट खुलते ही बेतहाशा बिखर गयी यादें

मुझे मुंह चिढा रहे हैं टूटे वादे और भूली बिसरी बातें।

अपने आप में गुंथ कर उलझ गयी है एक एक याद

छोर नहीं मिल रहा इसलिए सुलझ नहीं रही कोइ बात।

इधर कोइ नहीं आता किस से करुँ फ़रियाद

बंद कमरे में घुट जायेगी फिर मेरी आवाज़।

बिखरी हुई कुछ यादें अभी भी सो रही हैं,

उनीदी पलकों पर कुछ ख़्वाब संजो रही हैं

हाथ लगाने पर ये चिल्लाएंगी चीख़ उठेगीं

अभी तो बस धीरे धीरे ही रो रहीं हैं

मन बहलाने को ये यादें कोई कहानी माँगेगी

टूटे जुडते रिश्तों की फिर कोई निशानी मांगेंगी

जाने कितनी सदियों से ये प्यासी हैं

मुझे पता है ये मेरी आखों से पानी मांगेंगी।

Related Posts with Thumbnails