सोमवार, 23 नवंबर 2009

मैं क्या करूं


कितना बदल गया है ज़माना मैं क्या करूं,
मुश्किल हुआ है दिल का लगाना मैं क्या करूं

माना के रास्ते में बड़ी भीड़ है मगर,
आता नही है अपना बनाना मैं क्या करूं

जाएं कहाँ पे किसको सुनाएं ये दास्तान,
सुनता नही है कोई फ़साना मैं क्या करूं

चेहरे को अपने रोज़ बदलते हैं सब यहाँ,
आता नही है कोई बहाना मैं क्या करूं

नज़रों के सामने कभी आजाएं वो अगर,
'अनवार' तुम ही मुझको बताना मैं क्या करूं

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