शनिवार, 30 मई 2009

मुबारक है मुझे

रौशनी ले लो नाबीनाई मुबारक है मुझे,

हर तरफ़ मेरे तमाशाई मुबारक है मुझे।


है दुआ महफिल में तेरी रौनक़े आबाद हों,


ये अकेलापन ये तनहाई मुबारक है मुझे।

3 टिप्‍पणियां:

मधुकर राजपूत ने कहा…

दर्द है, चुभन है, कुंठा है और कुंठा ही शायरी के लिए कच्चा माल है। क्या खूब गूथा है आपने शब्दों को कुंठा में लपेटकर। चार लाइनें सब कुछ बयान करती हैं। वैसे अकेले में खुद से बात करने के बेहतरीन लम्हे मिलते हैं। खुद को नवऊर्जा से संचरित करने के लिए वक्त होता है, सोच बनती है कि चलो एक बार फिर खड़े होकर नई मंजिलें तय कर लें और पाकर ही दम लें।

Tarun ने कहा…

Wah kya baat hai, khaskar teesri line

krishnanandmisra ने कहा…

bhale na banana koyla mughe,
cahe na banana raakh,
kar maaf sub paap mere,
praphu rakhana charno ke pass|

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