
बेनाम पुकारूँ तो कभी तेरे नाम से,
तुझको पुकारता हूँ मैं हर इक मुक़ाम से।
अशको के साथ साथ मेरे ग़म छलक गए,
रखा था अपने दिल में बड़े एहतराम से,
परछाइयों से भी मुझे लगने लगा है डर,
मैंने बुझा दिया है चिरागों को शाम से।
होठों पे तबस्सुम मगर दिल में मैल था,
करते रहे फरेब बड़े एहतिमाम से।
'अनवार' हमको ऐसी बहारें भी कुछ मिलीं,
घबरा गया हूँ आज बहारों के नाम से।
3 टिप्पणियां:
परछाइयों से भी मुझे लगने लगा है डर,
मैंने बुझा दिया है चिरागों को शाम से।
wah wah bhAI jawab nahi aapka
ye wala ghar kabhi dikhya nahi aapne jo aapne pic lagayi hai.
ROHIT JI AAP KABHI TANHAEYON KE ANDHERON MEIN HAMARE GHAR NAHI AAYE...
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