गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

कोई तो इधर आए


इस बंद हवेली में दम मेरा घुट जाए,
पलकों को बिछाए हूँ कोई तो इधर आए।

सुनसान अंधेरे में घबराएगा दिल मेरा,
डरता हूँ कहीं सूरज सोने चला जाए।


अपने सभी ज़ख्मों को मैं दिल में छुपा लूँगा,
कोशिश है के आंखों से आंसू छलक जाए।

चौराहे पे कर अब मंजिल ही नही मिलती,
रस्ता भी नही मालूम जायें तो कहाँ जायें।

'अनवार' अकेले में मांगी है दुआ रब से,
घंघहोर अंधेरों तक कोई तो किरण आए।

6 टिप्‍पणियां:

Rohit "meet" ने कहा…

wah bhai wah bahut dino baad lekin shandar bahut umda gazal

amrendra "amar" ने कहा…

अपने सभी ज़ख्मों को मैं दिल में छुपा लूँगा,
कोशिश है के आंखों से आंसू न छलक जाए।

kya baat hai sir bahut dard chipa hai in shaandar panktiyo me .....thanx srir........

मधुकर राजपूत ने कहा…

या ख़ुदा आपकी दुआएं पूरी हों, अच्छी ग़ज़ल लिखी है साहब। अरसे बाद मेरे ब्लॉग पर आए। वैसे ही जैसे इस ज़माने में अचानक कोई बिना नोटिस वाली चिट्ठी आ जाए। कितने दिनों बाद मिले हो। इस आभासी जगत के तारों से जुड़ा हमारा दोस्ती का रिश्ता मजबूत होता रहे इसलिए ज़ल्दी ज़ल्दी आते रहा करो ज़नाब। आपको e-चिट्ठी लिखता हूं तो जवाब नहीं मिलता, लेकिन उम्मीद रहती है कि एक दिन दोस्त को भूले भटके याद ज़रूर करोगे।

daanish ने कहा…

सुनसान अंधेरे में घबराएगा दिल मेरा,
डरता हूँ कहीं सूरज सोने न चला जाए।


waah-wa !
ek dm alag-si baat kahi hai
sb se judaa...
nayaa nazariyaa hai
gazal achhee hai.....mubarakbaad .

Mukesh 'nadan' ने कहा…

huzoor jahan ghutne lagega dam
befikr rahiye wahan thaam lenge ham

Seema Singh ने कहा…

bahut hi pessimistic kavita hai ye toh. Naye saal mein nayi nayi umeedein ayyen. Wish you a very happy new year!!

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