शनिवार, 29 अगस्त 2009

दोस्त का गिफ़्ट


कैसे भेजूं ए मेरे दोस्त बता फूल तुझे,

जबकि कांटे ही चुभाये हों ज़माने ने मुझे।

1 टिप्पणी:

राहुल शर्मा ने कहा…

सर,पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं .
इन दो पंक्तियों में ही कितनी व्यापकता है,वर्तमान जीवन,घटती संवेदनाएं और .......................!!!!!
डॉ0 रवीन्द्र प्रभात की पंक्तियाँ याद याद आ रही हैं-
"फूल के संग काँटों की अगुवाई करती है
ज़िन्दगी बस अब मौत की भरपाई करती है "

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