बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

प्रतिक्रिया

राहुल भाई आप ही की तरह अन्य मित्र भी मेरे दर्द की वजह पूछते हैं , मुझे लगता है की जो लोग रिश्तों को बचाए रखने में सारी उम्र लगा देते हैं अक्सर उन्हें ऐसे ही ज़ख्मों से दो -चार होना पड़ता है हाँ ये और बात है के आसानी से ये ज़ख्म दुनिया के सामने अयाँ नही होते , कृष्ण बिहारी नूर साहब के शब्दों में:-
तमाम जिस्म ही घायल था घाव ऐसा था,
कोई न जान सका रखरखाव ऐसा था।

=अनवारुल हसन

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बिल्कुल सही कहा है सर।
यही वास्तविकता है।

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