
जैसे फ़िज़ाओं में तितली मचलती है।
यादों की चिलमन सी गिरती संभलती है,
अँधियारा होते ही दीपक सा जलती है।
तारों के झुरमुट में रस्ते बनाती है,
गीतों और गज़लों के मुखड़े सजाती है।
जीवन का राग मेरे साथ-साथ गाती है,
दूर कहीं छुप-छुप के पायल खनकाती है।
वादा है उसका मैं सपनो में आऊँगी,
प्रीतम का सूना घर आँगन सजाऊँगी।
देहरी पे खुशियों के दीपक जलाऊंगी,
रेशम की चमकीली माला बन जाऊंगी।
चाहत है सच्ची तो फिर क्यों ये दूरी है ?
लगता है तुम बिन ये ज़िन्दगी अधूरी है।
साजन से मिलना है ऐसी मजबूरी है ,
सपनों की खातिर तो सोना ज़रूरी है।
रात बड़ी बैरन है मुझको सताती है ,
ख़्वाबों की डोली को दूर लिए जाती है।
नैनों के आँचल से निंदिया चुराती है,
नींद नहीं आती है, नींद नहीं आती है...
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5 टिप्पणियां:
अच्छा है! कोशिश करते रहेए।
अंतरजाल के संसार में हार्दिक अभिनन्दन.
आपकी रचनात्मक मेघा सराहनीय है.
हमारी शुभ कामनाएं.
कभी समय मिले तो इस तरफ भी आयें, और हमारी मुर्खता पर हंसें.
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/ http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
plz remove word verification
Mujhe kavitaa bohot achhee lagee. Likhtee maibhee hun, kahaniyan, lekh, kavitayen, atmsansmaran, par peshewar lekhika nahee hun.
sheh aur shubhkamnaayon sahit
Shama
चाहत है सच्ची तो फिर क्यों ये दूरी है ?
लगता है तुम बिन ये ज़िन्दगी अधूरी है।
साजन से मिलना है ऐसी मजबूरी है ,
सपनों की खातिर तो सोना ज़रूरी है।
हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
जज्बात पर आपके जज्बातों को पढ़कर अच्छा लगा। अनवार साहब आपने हमारे ब्लॉग पर दस्तक दी, शुक्रिया। एक बात से थोड़ा असहमत हूं। आतंकवाद कभी पॉजिटिव नहीं होता। मानवता पर चोट करने वाला कोई माध्यम हमारा समाज अंगीकार नहीं करता। क्रांति और आतंकवाद में फर्क है। क्रांति विचारों की जमीन पर होती है और आतंकवाद अति उन्माद की देन है। क्रांति सोचने पर मजबूर करती है और लोग खुद क्रांति से जुड़ने लगते हैं, लेकिन आतंकवाद तो थोपा जाता है। राज तो स्वयं आतंकवाद फैला रहे हैं। फिर क्या हम भी उनकी श्रेणी में नहीं आ जाएंगे। सार्थक और समवेत पहल की जरूरत है सर आतंकवाद की नहीं। एक और गुजारिश है कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें।
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