
आप के पास वाली कुर्सी पर
अब कोई और बैठता है
आप के क़रीब है
ये सोच कर ऐंठता है।
मेरी हर चीज़ पर
कर लिया है अधिकार,
मुझे बना दिया है लाचार।
ऑफिस से लेकर घर तक
आपके सारे काम निपटाता है।
वो इसी पर खुश है
के आप के घर जाता है।
लोग छुप छुप कर बतिया रहे है
आप पर उँगलियाँ उठा रहे हैं
बदनामी आप की होगी
उसका क्या जाता है।
कभी मैंने भी आपका हाथ बटाया था,
घर नहीं पर ऑफिस का काम निपटाया था।
एक फ़ैसले ने मुझे आप से दूर कर दिया,
मेरे ट्रांसफ़र ने मुझे मजबूर कर दिया।
हम आप से एक बात कहना चाहते हैं,
हम आप के पास रहना चाहते हैं।
4 टिप्पणियां:
Anwaar ji bahut hi marmik likha hai,aaj ki sachai yahi hai bina chaplusi ke kuch ho nahi pata,aisa lagta hai ki duniya ko such bolnewalon ki jaroorat nahi rahi.
kabhi lagta hai samajh gayee kiske liye likha hai,kabhi fir ek andhera sa ho jata hai,kabhi ye bat apni si lagti hai,to kabhi ek beganapan aa jaata hai,ap hi bataiye ye raaj kya hai,is baat ke peeche ka kirdaar kya hai
wah bhai pad kar nida fazali ji ki line yaad aa gayi
har aadmi mai hote hai 10-20 aadmi jisko bhi dekhna kai baar dekhna .....
सीमा जी शुक्रिया...
...अनुपमा जी ये आप की ईमानदारी है जो ये टिपण्णी लिखी है...
और रोहित जी आप का आशय मैं समझ नहीं पा रहा ...
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