शनिवार, 6 दिसंबर 2008

इंसान का चेहरा!


उसे कोई भी शै हंसती हुई अच्छी नही लगती,
वो फूलों के लबों से मुस्कुराना छीन लेता है।
घने जंगल इसी की ज़द में आ कर शहर बनते हैं,
ये इन्सां तो परिंदों का ठिकाना छीन लेता है।

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